मोकू कहाँ ढूंढें रे बन दे ,मैं तो तेरे पास में
(१ )
न तीरथ में न मूरत में न एकांत निवास में ,
न मन्दिर में न मस्जिद में ,न काबे कैलास में।
मोकू कहाँ ढूंढें रे बंदे मैं तो तेरे पास में।
(२ )
न मैं जप में न मैं तप में ,न मैं बरत उपास में ,
न मैं किरिया -करम में रहता ,न मैं जोग संन्यास में।
मोकू कहाँ ढूंढें रे बंदे मैं तो तेरे पास में।
(३ )
न ही प्राण में न ही पिंड में ,न हूँ मैं आकाश में ,
न ही प्राण में न ही पिंड में ,न हूँ मैं आकाश में।
न मैं परबत के गुफा में ,न ही साँसों के सांस में।
मोकू कहाँ ढूंढें रे बंदे मैं तो तेरे पास में।
(४ )
खोजो तो तुरत मिल जावूँ एक पल की तलाश में ,
कहत कबीर सुनो भई साधौ मैं तो हूँ बिस्वास में।
आदि श्री गुरुग्रंथ साहब जी से कबीर जिउ सलोक (१९७ -२०० )
कबीर हज काबे हउ जाइ था आगै मिलिया खुदाइ।
साईँ मुझ सिउ लरि परिआ तुझै किंहीं फुरमाई गाइ।
कबीर हज काबे होइ होइ गइआ केती बार कबीर।
साईँ मुझ महि किआ खता मुखहु न बोलै पीर।
कबीर जीअ जु मारहि जोरु करि कहते हहि जु हलालु।
दफतरु दई जब काढ़िहै कउनु हवालु।
कबीर जोरु कीआ सो जुलमु है लेइ जबाबु खुदाइ।
दफ़तर लेखा नीकसै मार मुहै मुहि खाइ।
कबीर हर तरह के पाखंड के खिलाफ हैं। बकौल कबीर के परमात्मा सृष्टि के कण कण में रमा हुआ रमैया है। उसे ढूंढने के लिए तीरथ करना व्यर्थ है। वह तो तेरी ही अंतर् ज्योति है। भांडा तो अपने मन का साफ़ रख. उस पर श्रद्धा तो रख। एक पल के भी किसी अंश में उसका अनुभव हो जाएगा।
कबीर अपने इसी मत को पुख्ता करते हुए मक्का मदीना में लगने वाले जमावड़े को सम्बोधित करते हुए कहते हैं मैं तो काबे कई मर्तबा गया। खुदा एक बार तो मुझसे लड़ ही पड़ा बोला तुझे किसने कह दिया ,मेरा घर काबे में ही है। बार बार गया कबीर काबे खुदा उससे नाराज ही बना रहा कभी वह साक्षी न बना उसका। क्या ख़ता हुई है साईं मुझसे कबीर पूछ्ता खुदा ने मुख नहीं खोला। रूठा ही रहा मुझसे।
कबीर हर प्रकार के तप और सिद्धि रिद्धि के खिलाफ आवाज़ उठाते हैं वह शरीर को कष्ट देना एक प्रकार की हिंसा ही मानते हैं भले कोई एक हाथ ऊपर करके बरसों एक पैर पर खड़ा रहे। शरीर को बहुबिध कष्ट देता रहे। कैसे भी बाहरी पाखंड से दिखावे से खुदा तसव्वुर में नहीं आ सकता। कयामत के दिन जब हिसाब माँगा जायेगा तो खुद पर किये गए जुल्म का भी हिसाब होगा।
निहितसार :कबीर का सारा दर्शन ब्रह्म ज्ञान पर टिका है। वह जीव के अंदर जो एक चैतन्य साक्षी है जो उसका निज स्वरूप है उसकी बात करते हैं। बड़ा वह चैतन्य साक्षी है जिसे काबा या किसी अन्य देव-स्थान तीर्थ आदि की प्रतीति होती है। वह साक्ष्य छोटा है साक्षी बड़ा है।काशी या मथुरा या फिर काबा बड़ा नहीं है बड़ा वह साक्षी है वही राम है अल्लाह है उसे बाहर कहाँ ढूंढता है। वह तो अंदर बाहर सब जगह रमा हुआ है।
एक प्रति-क्रिया फेसबुक पोस्ट :
(१ )
न तीरथ में न मूरत में न एकांत निवास में ,
न मन्दिर में न मस्जिद में ,न काबे कैलास में।
मोकू कहाँ ढूंढें रे बंदे मैं तो तेरे पास में।
(२ )
न मैं जप में न मैं तप में ,न मैं बरत उपास में ,
न मैं किरिया -करम में रहता ,न मैं जोग संन्यास में।
मोकू कहाँ ढूंढें रे बंदे मैं तो तेरे पास में।
(३ )
न ही प्राण में न ही पिंड में ,न हूँ मैं आकाश में ,
न ही प्राण में न ही पिंड में ,न हूँ मैं आकाश में।
न मैं परबत के गुफा में ,न ही साँसों के सांस में।
मोकू कहाँ ढूंढें रे बंदे मैं तो तेरे पास में।
(४ )
खोजो तो तुरत मिल जावूँ एक पल की तलाश में ,
कहत कबीर सुनो भई साधौ मैं तो हूँ बिस्वास में।
आदि श्री गुरुग्रंथ साहब जी से कबीर जिउ सलोक (१९७ -२०० )
कबीर हज काबे हउ जाइ था आगै मिलिया खुदाइ।
साईँ मुझ सिउ लरि परिआ तुझै किंहीं फुरमाई गाइ।
कबीर हज काबे होइ होइ गइआ केती बार कबीर।
साईँ मुझ महि किआ खता मुखहु न बोलै पीर।
कबीर जीअ जु मारहि जोरु करि कहते हहि जु हलालु।
दफतरु दई जब काढ़िहै कउनु हवालु।
कबीर जोरु कीआ सो जुलमु है लेइ जबाबु खुदाइ।
दफ़तर लेखा नीकसै मार मुहै मुहि खाइ।
कबीर हर तरह के पाखंड के खिलाफ हैं। बकौल कबीर के परमात्मा सृष्टि के कण कण में रमा हुआ रमैया है। उसे ढूंढने के लिए तीरथ करना व्यर्थ है। वह तो तेरी ही अंतर् ज्योति है। भांडा तो अपने मन का साफ़ रख. उस पर श्रद्धा तो रख। एक पल के भी किसी अंश में उसका अनुभव हो जाएगा।
कबीर अपने इसी मत को पुख्ता करते हुए मक्का मदीना में लगने वाले जमावड़े को सम्बोधित करते हुए कहते हैं मैं तो काबे कई मर्तबा गया। खुदा एक बार तो मुझसे लड़ ही पड़ा बोला तुझे किसने कह दिया ,मेरा घर काबे में ही है। बार बार गया कबीर काबे खुदा उससे नाराज ही बना रहा कभी वह साक्षी न बना उसका। क्या ख़ता हुई है साईं मुझसे कबीर पूछ्ता खुदा ने मुख नहीं खोला। रूठा ही रहा मुझसे।
कबीर हर प्रकार के तप और सिद्धि रिद्धि के खिलाफ आवाज़ उठाते हैं वह शरीर को कष्ट देना एक प्रकार की हिंसा ही मानते हैं भले कोई एक हाथ ऊपर करके बरसों एक पैर पर खड़ा रहे। शरीर को बहुबिध कष्ट देता रहे। कैसे भी बाहरी पाखंड से दिखावे से खुदा तसव्वुर में नहीं आ सकता। कयामत के दिन जब हिसाब माँगा जायेगा तो खुद पर किये गए जुल्म का भी हिसाब होगा।
निहितसार :कबीर का सारा दर्शन ब्रह्म ज्ञान पर टिका है। वह जीव के अंदर जो एक चैतन्य साक्षी है जो उसका निज स्वरूप है उसकी बात करते हैं। बड़ा वह चैतन्य साक्षी है जिसे काबा या किसी अन्य देव-स्थान तीर्थ आदि की प्रतीति होती है। वह साक्ष्य छोटा है साक्षी बड़ा है।काशी या मथुरा या फिर काबा बड़ा नहीं है बड़ा वह साक्षी है वही राम है अल्लाह है उसे बाहर कहाँ ढूंढता है। वह तो अंदर बाहर सब जगह रमा हुआ है।
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Azamgarh Express
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जिस मूर्ति को आप 9 दिन पुजने के बाद कूड़े मे फेक आए थे उसे कूड़े से निकाल कर गड्ढा खोदकर दफनाने का काम मुसलमान कर रहे हैं।
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