पारितंत्रों की सलामती हमारी सलामती है। वायुमंडलीय तंत्र टूटे तो हम भी नहीं बचेंगे। ये कोरी चेतावनी नहीं है। दुश्चिंता है ग्रेटा थूंबर्गों की मिलेनियल्स की हम सभी की
योरोप में लू का प्रकोप उत्तरी ध्रुव से बड़े पैमाने पर हिमचादर का सफाया इधर हमारे अपने आँगन भारत में दक्षिण पश्चिम मानसून से होने वाली मूसलाधार बारिस कई इलाको को जल-समाधि दिलवाती दिखी इस दरमियान चौदह सौ लोगों ने अपनी जान गंवाई ।
ज़ोरदार ताबड़तोड़ तरीके से अब तक संदेह की नज़र से देखी गई जलवायु आपदा अब साफ़ साफ़ दस्तक देने लगी है। वन क्षेत्रों की आग अब बरस भर सुलगती है सूखे वन्य इलाके झुलसने को बेबस खड़े हैं।
वन्य प्राणियों के घरोंदों की कौन कहे मानुस भी दहल उठे हैं घर बचायें या घर का साज़ो सामान या अपनी जान बचाके भाग खड़े होवें हतप्रभ है ऑस्ट्रेलिया जैसे मुल्क भी।
इस आपदा से आँखें चुरा ली दिसंबर २०१९ के मेड्रिड में बुलाये गए जलवायु जमावड़े ने। संयुक्त राष्ट्र जलवायु संवाद किसी नतीजे पर न पहुँच सका।
अब ये २०२० जाने वह पेरिस सहमति को अमली जामा पहनायेगा या फिर इस ओर से ट्रम्प की तरह पल्ला झाड़के अलग खड़ा हो जाएगा।इस दौर की युवा भीड़ ग्रेटा थूंबर्ग की तरह वर्ष भर एक्शन के लिए हमें अभिप्रेरित कर रही है।
Now is the time to act .Let us put our acts together .
हमारा लक्ष्य इस सदी के अंत के आते आते ग्लोबी तापमानों में होने वाली वृद्धि को हरचंद कोशिश के साथ पूर्व उद्योगिक स्तर से २सेल्सियस नीची रखना ही होगा। सभी को देखना होगा भूमंडलीय तापमानों में बढ़ोतरी किसी भी हाल डेढ़ सेल्सियस से ऊपर न होने पावे।
यही पेरिस सम्मलेन का दृढ निश्चय था।
लेकिन १९७ मुल्कों की तमाम कोशिशें फिर भी इस वृद्धि को २. ८ से ३ सेल्सियस तक होने से रोक पाने में असमर्थ दिख रहीं हैं।विनाशकारी सिद्ध होगी यह बढ़ोतरी माहौली तंत्रों अट्मॉस्फेरिक सिस्टम्स और परिमंडलीय निकायों एवं पारितंत्रों के लिए पूरी पारिस्थितिकी के लिए मनुष्यों की तो बिसात ही क्या है पारितंत्रों की सलामती हमारी सलामती है। वायुमंडलीय तंत्र टूटे तो हम भी नहीं बचेंगे। ये कोरी चेतावनी नहीं है।
दुश्चिंता है ग्रेटा थूंबर्गों की मिलेनियल्स की हम सभी की।
दिसंबर २०१९ तक ना नुकर करते १९७ में से गिनती के मुल्क हैं जो एक संकल्प लेते दिखें हैं। कुछ करने का इरादा रखते हैं ये मुल्क। शायद यहीं से कोई रास्ता निकले।
बरस २०२० कई और पर्यावरण बैठकों का आयोजन करेगा।
Let 2020 be the year of action .Let action be the harbinjer of ambition .
ज़ोरदार ताबड़तोड़ तरीके से अब तक संदेह की नज़र से देखी गई जलवायु आपदा अब साफ़ साफ़ दस्तक देने लगी है। वन क्षेत्रों की आग अब बरस भर सुलगती है सूखे वन्य इलाके झुलसने को बेबस खड़े हैं।
वन्य प्राणियों के घरोंदों की कौन कहे मानुस भी दहल उठे हैं घर बचायें या घर का साज़ो सामान या अपनी जान बचाके भाग खड़े होवें हतप्रभ है ऑस्ट्रेलिया जैसे मुल्क भी।
इस आपदा से आँखें चुरा ली दिसंबर २०१९ के मेड्रिड में बुलाये गए जलवायु जमावड़े ने। संयुक्त राष्ट्र जलवायु संवाद किसी नतीजे पर न पहुँच सका।
अब ये २०२० जाने वह पेरिस सहमति को अमली जामा पहनायेगा या फिर इस ओर से ट्रम्प की तरह पल्ला झाड़के अलग खड़ा हो जाएगा।इस दौर की युवा भीड़ ग्रेटा थूंबर्ग की तरह वर्ष भर एक्शन के लिए हमें अभिप्रेरित कर रही है।
Now is the time to act .Let us put our acts together .
हमारा लक्ष्य इस सदी के अंत के आते आते ग्लोबी तापमानों में होने वाली वृद्धि को हरचंद कोशिश के साथ पूर्व उद्योगिक स्तर से २सेल्सियस नीची रखना ही होगा। सभी को देखना होगा भूमंडलीय तापमानों में बढ़ोतरी किसी भी हाल डेढ़ सेल्सियस से ऊपर न होने पावे।
यही पेरिस सम्मलेन का दृढ निश्चय था।
लेकिन १९७ मुल्कों की तमाम कोशिशें फिर भी इस वृद्धि को २. ८ से ३ सेल्सियस तक होने से रोक पाने में असमर्थ दिख रहीं हैं।विनाशकारी सिद्ध होगी यह बढ़ोतरी माहौली तंत्रों अट्मॉस्फेरिक सिस्टम्स और परिमंडलीय निकायों एवं पारितंत्रों के लिए पूरी पारिस्थितिकी के लिए मनुष्यों की तो बिसात ही क्या है पारितंत्रों की सलामती हमारी सलामती है। वायुमंडलीय तंत्र टूटे तो हम भी नहीं बचेंगे। ये कोरी चेतावनी नहीं है।
दुश्चिंता है ग्रेटा थूंबर्गों की मिलेनियल्स की हम सभी की।
दिसंबर २०१९ तक ना नुकर करते १९७ में से गिनती के मुल्क हैं जो एक संकल्प लेते दिखें हैं। कुछ करने का इरादा रखते हैं ये मुल्क। शायद यहीं से कोई रास्ता निकले।
बरस २०२० कई और पर्यावरण बैठकों का आयोजन करेगा।
Let 2020 be the year of action .Let action be the harbinjer of ambition .
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