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जनवरी, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

गाय का संरक्षण भारतीय संस्कृति का ही नहीं खेती किसानी का भी संरक्षण साबित हो सकता है। यहां एक साथ ट्रेकर और बैलों से जुताई का काम हो सकता है। छोटी जोत वालों की हैसियत से बाहर ही रहा आया है ट्रेकटर। हिन्दुस्तान में किसी भी चीज़ को कम करने की ज़रूरत नहीं है संशाधनों के विकल्प बढ़ाते जाने की है।

भाई रणवीर सिंह जी ने भारतीय नस्ल की गाय के संरक्षण के लिए ट्रेकटर के उपयोग को और बढ़ावा न देकर बैलों की जोड़ी द्वारा  हल चलाने की परम्परा की ओर  लौटने की बात की है। उनकी इस बात में जान है के आज भी भारत के अंदरूनी इलाकों में खेत जोतने का यह तरीका काम कर रहा है। मैं इससे सहमत हूँ दिल्ली से गोहाटी तक की रेलयात्रा में ही नहीं दिल्ली से केरल प्रदेश की यात्रा में भी ,दिल्ली चैन्नई ,दिल्ली मुंबई की यात्राओं में भी मैंने यही नज़ारा देखा है।चैन्नई से बंगलुरु और चैन्नई से पुडुचेरी यात्रा में यही देखा है। चैन्नई से तिरुपति यात्रा में भी।केरल के कन्नूर से ऊटी और उससे और  आगे भी दृश्य यही है।    परम्परा आकर्षित ही नहीं करती संरक्षण भी प्राप्त करती है अमरीका जैसे विकसित राष्ट्रों में जहां ऑर्गेनिक फार्म्स भी हैं ऑर्गेनिक खेती भी है उत्पाद भी हैं। किसानों से उपभोक्ता सीधे उत्पाद खरीदता है खेत में जाकर ,फारमर्स मार्किट में जाकर।  गाय का संरक्षण भारतीय संस्कृति का ही नहीं खेती किसानी का भी संरक्षण साबित हो सकता है। यहां एक साथ ट्रेकर और बैलों से जुताई का काम हो सकता है। छोटी जोत वालों की हैसियत से बाहर

FDA Panel Gives Qualified Support To Claims For 'Safer' Smoking Device(HINDI )

एक्स स्मोकर होने के नाते हमारा ऐसा मानना है ये जो ऐबदार शौक की चीज़ें होतीं हैं यहां फिसलन बहुत है। मैं कोरोनरी बाई पास ग्रेफ्टिंग से गुज़र चुका हूँ। रेड वाइन/वाइट वाइन  को लेकर भी हृदय रोगों के माहिर एक मत नहीं हैं मुझे चोटी के माहिरों से अनुदेश लेते रहने का सौभाग्य  प्राप्त है एस्कॉर्ट्स -फोर्टिस -एम्सआदि  -मायोट  होस्पिअटल चैन्नई के एक विशेषज्ञ ने मुझसे कहा -शर्मा साहब मैं ने अपनी  चालीस साला प्रेक्टिस में कभी भी किसी मरीज़ को वाइन लेने के लिए प्रेरित नहीं किया है वजह इसकी ये है आप कब वाइन से खुलकर रम पर आ जायेंगे इसका कोई निश्चय नहीं।  बड़ी अजीब बात है जब आप जानते हैं के बीफ (गौ मांस )अनेक जीवन शैली रोगों की वजह बनता है तब यह निहायत बे -वक़ूफ़ी की बात है के आप इसको कम-हानिकारक पदार्थ बनाने के उपाय करें। धूम्रपान के मामले में भी यही बात लागू होती है ये सब बिक्री को बढ़ाने के हथ-कंडे होते हैं उस दौर में जब हम ग्रीन एनर्जी और पर्यावरण  -अपनी हवा पानी मिट्टी की गुणवत्ता को लेकर चिंतित हैं जलवायु परिवर्तन की आहट से आहत ही नहीं हैं अप्रत्याशित विनाश लीलाएं भी देख रहें हैं अपने बढ़ते कार्बन 

श्रवण मंगलम ,ज्ञान मंगलम ,दृश्य मंगलम दीदार मंगलम(IT IS HARD TO LISTEN WHEN YOU CAN'T HEAR (HINDI II )

 बीस साल से कम उम्र के  ज्यादातर  लोग श्रव्य -सीमा की अधिकतम आवृत्ति वाली बीस हज़ार साइकिल प्रतिसेकिंड की ध्वनि सुन लेते हैं। लेकिन उम्र के साथ श्रवण   ह्रास, श्रवण क्षय का कारण श्रवण (कान )की प्रत्यास्थता इलास्टिसिटी का क्षय होना है ,उम्रदराज़ होते जाने की  एक स्वाभाविक प्रक्रिया का अंग है ,तो भी पचास साला लोग १२,००० साइकिल प्रतिसेकिंड से ऊपर तक की ध्वनियाँ आराम से सुन लेते हैं।  क्योंकि बातचीत का सामान्य व्यवहार अमूमन २६० साइकिल प्रतिसेकिंड की ध्वनियों के आसपास ही रहता ही इसलिए पचास साला लोगों को कोई श्रवण सम्बन्धी बाधा यूं पेश नहीं आती है।  किसी भी आवाज़ को सही दिशा में कान देने का हमारा गुण इस तथ्य से संचालित रहता है के हमारा कान यदि आवाज़ का स्रोत हमारे दाहिने और है तो दायां कान बाएं की अपेक्षा इस ध्वनि  को ०.००० १ सेकिंड पहले (एक सेकिंड का दस -हज़ारवां  भाग पहले )सुन लेगा। आखिर हमारे दोनों कानों के बीच फांसला भी तो है हमारी दोनों  आँखों की तरह।  और इसी से हम कयास लगा लेते हैं दूर से आती किसी बैंड बाजे की आवाज़ का के वह किस दिशा से आ रही है। अलबत्ता यदि आप मुड़के उसी तरफ देखने लगे

स्पर्श एक वैयक्तिक ऐन्द्रिक सुख है ध्वनि दूर -स्पर्श है -टच एट ए डिस्टेंस। श्रवण एक सामाजिक ऐन्द्रिक अनुभव है।

हमारी यह सृष्टि ये सारी कायनात एक महावाद्यवृन्द रचना में नहाई हुई है वैसे ही जैसे ये विश्व "पृष्ठभूमि विकिरण कॉस्मिक बेक-ग्राउंड रेडिएशन "में संसिक्त है डूबा हुआ है। सृष्टि का प्रादुर्भाव भी ध्वनि से ही हुआ है जिसे ओंकार या ॐ कहा गया है आज भी सूर्यनारायण से यही ध्वनि निसृत हो रही है। लेकिन हमारे कान अपने काम की ही बात सुनने के अभ्यस्त हो चले हैं। हमारे श्रवण की भी सीमा है।  इस श्रव्य परास के नीचे  अवश्रव्य और इसके ऊपर पराश्रव्य ध्वनि  हैं। श्रवण चंद आवृतियों ध्वनि तरंगों की लम्बाई तक ही सीमित है। २० साइकिल प्रतिसेकिंड से लेकर २० ,००० साइकिल्स प्रतिसेकिंड फ़्रीकुएंसी (आवृत्ति )की ही ध्वनियाँ हमारे श्रवण के दायरे में आती हैं।  अगर हम २० हर्ट्ज़ (एक साइकिल प्रतिसेकिंड को एक हर्ट्ज़ कहते हैं  )से नीचे की ध्वनि सुनने लगें तो जीना मुहाल हो जाए हमारा। सांस की धौंकनी ,पेशियों की गति ,हमारे पदचापों  की ध्वनि हमें चैन से न बैठने दे चरचराहट चरमराहट ,धमाके हम सुनते रहें अपने अंदर से बॉन कंडक्शन के द्वारा। इसीलिए हमें अपनी रिकार्ड की गई आवाज़ अपनी सी नहीं लगती क्योंकि जब हम बोलते हैं तो

Best teas to drink for IBS

Treating irritable bowel syndrome can include changing diet, reducing stress, and taking medication. Can certain herbs and herbal teas also help relieve symptoms? Read on to learn more about teas that may be best for  irritable bowel syndrome  or IBS, and how they may help with IBS symptoms. Tea for IBS symptoms There are many types of tea that may be beneficial for easing the symptoms of IBS. These include: Peppermint Peppermint tea may help with the symptoms of IBS. One review  found that peppermint reduced the severity of pain for people with IBS compared to a  placebo . Peppermint is not recommended for use by people with hiatal  hernias , gastroesophageal reflux disease, or gallbladder problems.  Heartburn  is not an uncommon side effect. Peppermint essential oil has also been studied as a treatment for IBS. Essential oils are meant to be inhaled through a diffuser or applied to the skin only after being diluted by carrier oil. People should always s