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फ़रवरी, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सनातन क़साई बनाम कुत्ताए लोग

सनातन क़साई बनाम  कुत्ताए लोग यूं स्वान (कुत्ता जी )हमारे पर्यावरण का हिस्सा नहीं रहा है लेकिन इस मामले में गोरों की तारीफ़ करनी पड़ेगी जिनके घर के बाहर लिखा होता है। माई होम इज़ वेअर माई डॉग इज़। ये लोग अपने पैट को डायपर तो नहीं पहनाते लेकिन उसका मलमूत्र ,एक्स्क्रीटा पूपर स्कूपर से खुद उठाकर उसका निपटान करते हैं। इलाज़ मुहैया होता  उनके पैट को डायबिटीज से लेकर कोरोनरी बाई पास ग्रेफ्टिंग तक. हमारे अमीरज़ादे पैट को इलाज़ तो  मुहैया करवाते हैं लेकिन आसपास के पर्यावरण को गंधाते है -दिल्ली का सबसे लोकप्रिय पार्क लोदी   गार्डन भी इनके लाडलों के मलमूत्र से गंधाता है। जगह जगह  डॉग एक्स्क्रीटा आपको परेशान करेगा। इफ दी डॉग   बिलोंग्स ट यू ,सो डज़ हिज एक्स्क्रीटा। लेकिन ये कुत्ताए लोग इसकी अनदेखी करते हैं। गंधा रखा  इन्होनें कॉलोनी मोहल्लों पार्कों को। आइये अब भारतीय नस्ल की गाय की बात की जाए विदेशी जिसका मूत्र आयात करते हैं दवा निर्माण के लिए। गौ रेचन (गाय के कान का मैल )मीग्रैन में रामबाण है। तो पंचगव्य यज्ञ को सम्पूर्णता प्रदान करता है। गाय का दूध ,घृत ,दही ,गोबर  ,गौ मूत्र  से एक ख़ास अनुपात में मिला

दो मेंड़ों की लड़ाई है यह

  दो मेंड़ों की लड़ाई है यह। जो जीता वही सिकंदर। एक मेंडा अतीत में किया गया मेरे ही पूर्व जन्मों का पुरुषार्थ और दूसरा मेरे द्वारा वर्तमान में किया गया पुरुषार्थ है। यहां  जिसे हम भाग्य या देव कहते हैं वह पूर्वजन्मों का पुरुषार्थ मात्र है। यदि वर्तमान का पुरुषार्थ (लक्ष्य  प्राप्ति के लिए किया गया  प्रयत्न ,इनपुट )  प्रबल है तो अतीत  का  पुरुषार्थ या देव हारेगा।  भाग्य कमज़ोर इच्छा शक्ति नपुंसक प्रयत्न का सहारा है।