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हिंदुत्व नाम है एक पर्यावरण -मित्र ,पर्यावरण सम्मत परम्परा का

हिंदुत्व नाम है एक पर्यावरण -मित्र ,पर्यावरण सम्मत परम्परा का ,पारिस्थितिकी -मित्रवत  चेतना का 

हिंदुत्व के अनुसार प्रकृति (माया )परमात्मा का ही प्रकट रूप है उसी की शक्ति है और शक्ति शक्तिमान से अलग नहीं होती है। जड़ हो या चेतन सबमें उसी एक परमात्मा का वास है जो जड़ में है वही चेतन में है। 

इसलिए हिंदुत्व में परबत पहाड़ दरिया ,झील ,नदी ,नाले,बावड़ियां  और हमारी वन्य सम्पदा ,पृथ्वी  का हरा बिछौना ,वन प्रांतर ,वन्य  पशु सभी पूज्य हैं। पेड़ -पौधे जीव -जंतु ,जीवाणु और सूक्ष्मतर जीव भी सभी पूज्य हैं। समुन्दर और उनमें तथा पृथ्वी की कोख में छिपे खनिज सभी वन्द्य हैं। 

चाँद सितारें नीहारिकाएँ ,नवग्रह ,तमाम तारामंडल ,राशियां सभी मान्य हैं अर्चना योग्य हैं।अंतरिक्ष के दैत्य कालकूप ,कालकोठरियाँ अंतरिक्ष की (ब्लेक होल्स )सभी पूजा के पात्र हैं सबके अपने पारितंत्र हैं जिनके साथ हमारा सहअस्तित्व कायम रहता  है। 

हमारी उत्सव  धर्मिता तमाम कर्मकांड इसी प्रकृति का धन्यवाद करते प्रतीत होतें हैं। प्रकृति का खेला है ,तमाम प्रपंच ,पांच महाभूतों का ही  बना बनाया खेल है। 

आकाश ,वायु ,अग्नि ,जल और पृथ्वी सभी की पूजा का यहां (हिंदुत्व में )विधान है। इन्हीं पंचदेवों का ,पांच शक्तियों का आवाहन पूजन अर्चन हम  नित्य  करते हैं। 

यही पंच - भूत आराधना है। 

चिपको आंदोलन हमारी पर्यावरण चेतना का स्वत :स्फूर्त गान रहा है। उत्तराखंड की अनगढ़ अपढ़ महिलाएं इसका सूत्रपात करतीं हैं। वृक्षों का आलिंगन करती हुई वे कहतीं हैं आओ इन्हें नहीं हमें काटो पहले। 

महाकाल के हाथ पर गुल होतें हैं पेड़ ,

सुषमा तीनों लोक की कुल होतें हैं पेड़। 

वनदेवता और वनदेवी वनवासियों के उपास्य देव बनते हैं हिंदुत्व में। सभी नदियाँ हमारे यहां जनमानस में पूज्य हैं।भले विकास की आंधी में अब वे गंधाने लगीं हैं।
भले हम वेदों की सीख की अनदेखी करते इतना उपभोग कर चुकें हैं प्राकृत संसाधनों का के हमें एक और पृथ्वी चाहिए सर्वाइवल के लिए। इसीलिए अब कायम रहने लायक विकास की बात होने लगी है। जलवायु परिवर्तन की आहटें बारहा महसूस की गईं हैं। 

माता भूमि : पुत्रोहं पृथ्विया :

पृथ्वी मेरी माँ है मैं उसका बेटा हूँ। 

'गंगा मेरी माँ का नाम बाप का नाम हिमालय' और गंगा को पृथ्वी  ही तो धारण किये है।

अथर्व वेद का भूमि सूक्त पारिस्थितिकी पर्यावरण संरक्षण   के लिए एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है। 

ॐ द्यो : शान्ति : अंतरिक्ष (शान्तिरन्तरिक्ष) शान्ति :

पृथ्वी शान्तिराप : शान्तिरोषधय : शान्ति :

वनस्पतये : शांतिर्विश्वे देवा : शान्तिर्ब्रह्म शान्ति :

सर्वं शान्ति : शान्तिरेव शान्ति : सा मा शान्तिरेधि। 

ॐ शांति : शांति : शान्ति :|| 

May there be peace in the heaven 

May there be peace in the atmosphere 

May there be peace on earth 

May there be peace across the waters 

May peace flow from herbs ,plants and trees 

May all the celestials beings radiate peace 

May peace be in the Supreme Being Brahman 

May peace pervade all quarters 

May that peace come to me too 

May there be peace ,peace ,peace

 (त्रिविध ताप शांति -आधिदैविक आधिभौतिक और आत्मिक शांति )

"Earth my mother ,set me securely with bliss in full accord with heaven ,

O wise one ,uphold me in grace and splendor "

सन्देश यही है प्रकृति का केवल शोषण ही नहीं दोहन और पोषण भी करो। कार्बन फुटप्रिंट घटाओ हे आधुनिक मानव अपना वरना पीछे पछताना पड़ेगा।

अब पछताए होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गईं खेत।  



  
  

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