सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

विज्ञान का कृष्ण पक्ष :Cimate Emergency


 Climate Change a Myth and Or Realty ?  

बिला शक जलवायु परिवर्तन हमारी हवा ,पानी और मिट्टी में मानवीयक्रियाकलापों (करतूतों और कुदरत के साथ किये गए हमारे सौतिया व्यवहार )द्वारा पैदा बदलाव की गवाही दृष्टा भाव से देखे जाने के साक्षी एकाधिक संस्थान सरकारी गैरसरकारी संगठन बन रहे हैं। इनमें शरीक हैं :
(१ )इंटरगावरनमेंटल पैनल आन क्लाइमेट चेंज बोले तो जलावायु में आये बदलाव से सम्बद्ध  अंतर् -सरकारी (शासकीय) पैनल
(२ )जैव वैविध्य और पारि -तंत्रीय सेवाओं से जुड़ा - इंटरगावरनमेंटल साइंस पॉलिसी प्लेटफॉर्म 
(३ )जलवायु केंद्रीय जन-नीति  शोध संस्थान इत्यादि
सभी ने समवेत स्वर एकराय से साफ -साफ़ माना है और बूझा भी है ,हमारा प्रकृति प्रदत्त पर्यावरण तंत्र  कुदरती (प्राकृत हवा पानी मिट्टी ) और तमाम पारितंत्र (इकोलॉजिकल सिस्टम्स )एक- एक करके लगातार दरकते -टूटते रहें हैं। इनके खुद को बनाये रखने ,साधे रहने की संतुलित बने रहने की कुदरती कूवत चुक गई है।
इसी के चलते अनेक प्राणी -प्रजातियां अब विलुप्त प्राय : हैं कितनी ही अन्य प्रजातियां रेड डाटा बुक में जगह बना चुकीं हैं इनके इक्का दुक्का चिन्ह ही अब दिखलाई दे रहे हैं। अकेले टाइगर का हम क्या करेंगें। पृथ्वी का कुदरती उर्वरा मिट्टी  का बिछौना छीज रहा है (टॉप साइल इरोजन या मिट्टी  की ऊपरी उपजाऊ परतों का अपरदन  ),जंगलों का सफाया सरे -आम ज़ारी है। नतीजा: हमारे समुन्दर तेज़ाबी होकर कराहने लगे हैं। समुद्री तूफानों की बेहद की  विनाशलीला अब हैरानी पैदा नहीं करती। अब तो ऑस्ट्रेलया का  जंगल भी सुलगने लगा है। केलिफोर्निया राज्य की तो यह नियति ही बन चुका है। भूमंडलीय तापन अब जो दिन दिखला दे वह थोड़ा।

क्या यह सब मिथक है मिथकीय अवधारणा मात्र है फैसला आप कीजिए। 

क्या किया जाए इस विनाश लीला को थामने के लिए ?  

ग्लोबी तापमानों की बढ़ोतरी को लगाम लगाने के लिए यह निहायत ज़रूरी है के २०३० तक कमसे कम १.५  सेल्सियस और ज्यादा से २ सेल्सियस यानी २०१० के विश्वव्यापी तापन स्तर पर थाम विश्व्यापी बढ़ते  तापमानों को थाम  लिया जाए।  दूसरे शब्दों में वर्तमान ४५ फीसद मानव-जनित उत्सरजनों को घटाकर पच्चीस फीसद पर लाना सुनिश्चित किया जाए। 

 कालान्तर (२०५० /२०७० तक) में  उत्सरजनों को ज़ीरो लेवल तक लाना भी अब लाज़मी समझा जा रहा है।
 हो ठीक इसका उलट  रहा है यह तो वही हो गया मर्ज़ बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा की। 
आखिर इस सबकी वजहें क्या है ?

विकसित देश अपना कथित जीवन स्तर नीचे लाने के लिए अपना बढ़ता हुआ फुट प्रिंट घटाने को ज़रा भी तैयार नहीं हैं। न ही तकनीकी अंतरण को यानी  उत्सर्जन घटाने वाली प्रौद्योगिकी मुफ्त में विकासमान तथा विकाशशील देशों को मुहैया करवाने को राज़ी हैं। कार्बन बजट की बातें भी बे -असर ही साबित हुई हैं जबकि चीन और भारत जैसे आबादी संकुल राष्ट्रों अफ्रिका महाद्वीप के देशों के लिए बढ़ती आबादी को जीवन जीवन कहने  लायक ज़रूरतें मुहैया करवाना यथा पानी बिजली सड़क जैसी सुविधाएं मुहैया  अब भी   कहीं आंशिक और कहीं पूरी तौर पर  हासिल नहीं हैं।पर्याप्त पोषण की कौन कहे ?
विकसित ,गैर -विकसित सभी मुल्कों द्वारा नीति गत बदलाव के तहत ग्रीन ऊर्जा , वैकल्पिक ऊर्जा ,सौर ,पवन ,भू ,ऊर्जाओं ,जैव -गैस का अंशदान कुल ऊर्जा  बजट में बढ़ाते जाना अब बेहद ज़रूरी हो गया  है।लेकिन क्या यह सब हो पायेगा ?
पीने लायक पानी पर्याप्त पोषण सब के लिए अन्न कहाँ से आएग ?गरीब अमीर के बीच की खाई कम नहीं हो रही है। 
मुफ्त बिजली खाद पानी नहीं सब के लिए बिजली पानी किसान को जैविक खाद स्थानीय उपायों से ही  मुहैया करवाया जाए। 
भविष्य वाणी है अगर कथित विकास मानव-जनित  उत्सर्जन यूं ही ज़ारी रहे तब एशिया के तकरीबन तीस करोड़ सत्तर लाख लोगों को जल - समाधि लेने से नहीं रोका जा सकेगा। तटीय क्षेत्रों को जल समाधि लेने का ख़तरा किताबी नहीं है इसकी जब तब आंशिक झलक दिखलाई देने लगी है। 
२०१५ में प्रदूषण पच्चीस लाख लोगों को खा चुका है। उत्तर भारत के चेहरे पे मुखोटा लग रहा है। मास्क मास्क और मास्क खामोशी के साथ अपनी बिक्री बढ़ा रहा है। 
गरीब दुनिया सोशल सेक्युरिटी ज्यादा  औलाद पैदा करने में तलाश रही है।अमीर देशों का मध्य वर्ग गरीबी की ओर आने लगा है गरीब देशों का दरिद्र नारायण सुदामा अपने ज़िंदा रहने की शर्तें नहीं पूरी कर पा रहा है जीवन की परिभाषा के हाशिये पे आ गया है। आसपास  त्राण को  कोई कृष्णा  नहीं है। खुदा ही हाफ़िज़ है। 
हमारे नगर वगैर रूह के निरात्मा जीवित हैं। कोई मरे हमें क्या हम तो सलामत हैं हमारी बला से। गरीब कहे हैं :आलतू - फ़ालतू आई बला को टाल तू।पर्यावरण पारितंत्रों की मौत प्राणी मात्र की मौत है। हमारी साँसें हवा पानी मिट्टी सभी तो सांझा है परस्पर पार्थक्य   कहाँ हैं ?हम सब एक  ही कायनात कुदरत के अलग -अलग दीखते प्रतीत होते  हिस्से हैं एक दूसरे से सम्बद्ध एक दूसरे के पोषक संवर्धक।इसे बूझना ज़रूरी है।      

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

किन बालकों में एलर्जीज़ का ख़तरा बढ़ जाता है

अमरीकी चिकित्सा संघ के विज्ञान पत्र JAMA Pediatrics में सद्य प्रकाशित एक दीर्घावधिक अध्ययन के नतीजे बतलाते हैं ,जिन शिशुओं को रोगग्रस्त होने पर एंटीबीओटिक्स दवाएं दी गईं बाल्यकाल में उनके कई किस्म की एलर्जीज़ की गिरिफ्त में आने की संभवाना बढ़ी हुई मिली। अध्ययन के तहत जो २००१ से २०१३ तक की अवधि में जुटाए गये आकड़ों पर खड़ा था सात लाख अठ्ठानवें हज़ार  चार सौ  छब्बीस बालकों का रिकार्ड खंगाला गया। किस  किसको कौन से समूह की एंटीबायोटिक दवाएं देने पर किस किस किस्म की एलर्जीज़ (प्रत्युर्जातमक प्रतिक्रियाओं )हुई इसका लेखा जोखा तैयार करने पर चौंकाने वाले नतीजे सामने आये : पता चला इनमें से कुल १७ फीसद शिशुओं को एक या एक से ज्यादा एंटीबायोटिक दवायें दी गईं। पता चला इनमें अनफिलैक्सिस ,एस्मा ,खाद्यों से पैदा प्रत्युर्जातमक प्रतिक्रियाओं का ख़तरा बढ़ गया। अलावा इसके चमड़ी की एलर्जी डर्मेटाइटिस (अंत:त्वचा शोथ जिसमें चमड़ी लाल तथा दर्दीला हो जाती है )अन्य एलर्जीज़ भी मिलीं।नासिका शोथ राइनाइटिस एवं नेत्र श्लेष्मलसंक्रमण कंजक्टिविटिस की गिरिफ्त में भी बालगण  आये। नेत्र  संक्रमण...

About World Physical Therapy Day: The theme this year is "Fit for life".

World Physical Therapy Day is on 8th September  every year. The day is an opportunity for physiotherapists from all over the world to raise awareness about the crucial contribution the profession makes to keeping people well, mobile and independent. In 1996, the  World Confederation of Physical Therapy  (WCPT) designated 8th September as World Physical Therapy Day. This is the date WCPT was founded in 1951. The day marks the unity and solidarity of the global physiotherapy community. It is an opportunity to recognise the work that physiotherapists do for their patients and community. Using World Physical Therapy Day as a focus, WCPT aims to support member organisations in their efforts to promote the profession and advance their expertise. Reports from around the world indicate that World Physical Therapy Day activities have a positive impact on the profession’s profile and standing with both the public and policy makers. Many WCPT member or...

कोरोना के नए स्ट्रेन से मरीजों को हो रहा कोविड निमोनिया, ये हैं लक्षण, जानें किसको सबसे ज्यादा खतरा

ध्यान दें: कोरोना के नए स्ट्रेन से मरीजों को हो रहा कोविड निमोनिया, ये हैं लक्षण, जानें किसको सबसे ज्यादा खतरा डॉक्टर शिवालक्ष्मी-अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्था (AIIMS )  वायरस की दूसरी लहर भारत पर कहर बनकर टूटी है। हर दिन काफी संख्या में लोग इस वायरस से संक्रमित हो रहे हैं। वहीं, देश के कई अस्पतालों में ऑक्सीजन की किल्लत और बेड्स की कमी लगातार देखी जा रही है। ऐसे में कई मरीजों को समय रहते इलाज न मिलने की वजह से उनकी जान भी जा रही है। वहीं, कोरोना का नया स्ट्रेन जिन मरीजों को अपना शिकार बना रहा है, उनमें कोविड निमोनिया पाया जा रहा है। तो चलिए आपको इसके बारे में विस्तार से बताते हैं। कोविड निमोनिया और निमोनिया में है ये फर्क आमतौर पर कोविड निमोनिया और आम निमोनिया एक जैसे ही होते हैं। लेकिन जिन लोगों को कोविड निमोनिया होता है उनके दोनों फेफड़ों में इंफेक्शन होता है। वहीं, आम निमोनिया वाले मरीजों में ज्यादातर इंफेक्शन एक फेफड़े में होता है। कोविड निमोनिया की पहचान डॉक्टर सीटी स्केन और एक्स-रे के जरिए कर लेते हैं। ये हैं लक्षण कोविड निमोनिया के लक्षण भी आम निमोनिया जैसे ही होते हैं। इ...